भगवान परशुराम जी का इतिहास
History of Lord Parshuram

भगवान परशुराम अजर-अमर है और इस श्लोक से पुष्टि होती है इस श्लोक के अनुसार यानि
अभी भी वह पृथ्वी पर मौजूद है
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण।
कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन।।
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
इस श्लोक के अनुसार अश्वत्थामा, राजा बलि, महर्षि वेदव्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, भगवान परशुराम तथा ऋषि मार्कण्डेय अमर हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम वर्तमान समय में भी कहीं तपस्या में लीन हैं। भगवान परशुराम का वर्णन अनेक धर्म ग्रंथों में मिलता है जैसे रामायण, महाभारत, श्रीरामचरितमानस आदि।
रामायण तथा श्रीरामचरितमानस में भगवान परशुराम का श्रीराम व लक्ष्मण से विवाद का वर्णन मिलता है वहीं महाभारत में भीष्म के साथ युद्ध का वर्णन है।
भगवान परशुराम रिषि जमद्दाग्नी के पांचवे पुत्र थे | वे उस
युग के अत्यंत क्रोधी साधू थे | विष्णु भगवान के दशावतार मे से छटा अवतार परशुराम
जी को माना जाता है | भगवान परशुराम मृत्यु से मुक्त थे उन्हें 7 चिरंजीवीयों मे
से एक माना जाता है | पुराणों मे इनकी मृत्यु का कोई विषिष्ठ उल्लेख नहीं है ऐसा
माना जाता है कि अपने उद्देश्य की पूर्ती के बाद वे स्वयं ही दुनियां छोड़ देंगे |
भगवान परशुराम विष्णु भगवान के छठे अवतार थे

परशुराम जी त्रेता युग (रामायण काल) में एक ब्राह्मण ऋषि के यहाँ जन्मे थे। जो विष्णु के छठा अवतार है।
पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म महर्षि भृगु के पौत्र महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को मध्यप्रदेश के इन्दौर जिला में ग्राम मानपुर के जानापाव पर्वत में हुआ।
वे भगवान विष्णु के आवेशावतार हैं।
भगवान परशुराम का जन्म वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था. इस दिन अक्षय तृतीया का पर्व भी मनाया जाता है. भगवान परशुराम ने सनातन धर्म को बढ़ाने का काम किया था.
भगवान परशुराम जी ने एक युद्ध में 21 प्रजा शोषक, धर्मांध, और आताताई राजाओं का संहार किया था. लेकिन दुष्प्रचार के कारण यह बताया गया कि इन्होंने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था. किसी धर्म जाति वर्ण या वर्ग विशेष के आराध्य ही नहीं बल्कि वे समस्त मानव मात्र के आराध्य हैं. इस दिन विष्णु जी की अराधना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. परशुराम भगवान का नाम जब भी आता है तो क्रोध का ज्ञान होता है.
भगवान परशुराम के जन्म की कथा
(Parshuram Story in Hindi)
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम को भगवान विष्णु के छठवें अवतार के रूप में माना जाता है. उन्हें चिरंजीवी रहने का वरदान मिला था. उनके पिता ऋषि जमदग्नि थे. ऋषि जमदग्नि ने चंद्रवंशी राजा की पुत्री रेणुका से विवाह किया था. ऋषि जमदग्नि और रेणुका ने पुत्र की प्राप्ति के लिए एक महान यज्ञ किया.
इस यज्ञ से प्रसन्न होकर इंद्रदेव ने उन्हें तेजस्वी पुत्र का वरदान दिया और अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जी ने जन्म लिया. ऋषि ने अपने पुत्र का नाम राम रखा था.
राम ने शस्त्र का ज्ञान भगवान शिव से प्राप्त किया और शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें अपना फरसा यानि परशु प्रदान किया. इसके बाद वह परशुराम कहलाए. परशुराम को चिरंजीवी कहा जाता है वह आज भी जीवित हैं. उनका वर्णन रामायण और महाभारत दोनों काल में होता है. श्री कृष्ण को उन्होंने सुदर्शन चक्र उपलब्ध करवाया था और महाभारत काल में भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान दिया था.
वे शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। उन्होनें कर्ण को श्राप भी दिया था। उन्होंने एकादश छन्दयुक्त "शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र" भी लिखा।

इच्छित फल-प्रदाता परशुराम गायत्री है-
"ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नः परशुराम: प्रचोदयात्।"
वे पुरुषों के लिये आजीवन एक पत्नीव्रत के पक्षधर थे। उन्होंने अत्रि की पत्नी अनसूया, अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी-जागृति-अभियान का संचालन भी किया था। अवशेष कार्यो में कल्कि अवतार होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर उन्हें शस्त्रविद्या प्रदान करना भी बताया गया है
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने तिर चला कर गुजरात से लेकर केरला तक समुद्र को पिछे धकेल ते हुए नई भूमि का निर्माण किया। और इसी कारण कोंकण, गोवा और केरला मे भगवान परशुराम वंदनीय है। वे भार्गव गोत्र की सबसे आज्ञाकारी सन्तानों में से एक थे, जो सदैव अपने गुरुजनों और माता पिता की आज्ञा का पालन करते थे।
परशुराम
भारद्वाज गोत्र के कुल गुरु भी हैं. परशुराम भार्गव गोत्र के एक गौड़ ब्राह्मण से
संबंध रखते हैं.
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शामगढ़ जिला- मंदसौर मध्यप्रदेश
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